ये तो सभी जानते हैं कि महाभारत के रचयिता वेदव्यास जी हैं लेकिन बहुत कम लोगों को पता है कि महर्षि वेदव्यास जी ने गणेश जी से महाभारत को लिखवाया था| इस विषय में भी गणेश जी की एक सुंदर सी कथा है. लेकिन पहले हम गणेश जी, महर्षि वेदव्यास और महाभारत के बारे में थोड़ा जान लेते हैं|
भगवानगणेश-
गणेश जी शिव और पार्वती के बेटे हैं| हाथी जैसा सिर होने के कारण इन्हें गजानन भी कहते हैं| इनका वाहन मूषक है | हिन्दू शास्त्रों के अनुसार किसी भी काम को करने से पहले गणेश जी का नाम लिया जाता है|
महाभारत-
महाभारत हिंदुओं का एक प्रमुख काव्य ग्रंथ है |यह काव्य ग्रंथ भारत का अनुपम धार्मिक, पौराणिक, ऐतिहासिक ग्रंथ है |यह विश्व का सबसे लंबा साहित्यक ग्रंथ भी है|
महर्षिवेदव्यासजी-
महर्षि वेद व्यास जी महाभारत ग्रंथ के रचयिता माने जाते हैं |महाभारत ग्रंथ का लेखन भगवान गणेश ने महर्षि वेदव्यास से सुन-सुनकर किया था| वेदव्यास महाभारत के रचयिता ही नहीं बल्कि उन घटनाओं के साक्षी भी रहे हैं जो उस समय घटित हुई है |अपने आश्रम से हस्तिनापुर की सूचना उन तक पहुंचती थी और वे उन घटनाओं पर अपनी सलाह भी देते थे|
महर्षि वेदव्यास जी ने भगवान गणेश जी को ही महाभारत जैसे ग्रंथ को लिखने के लिए क्यों चुना-
बात उस समय की है जब महर्षि वेदव्यास महाभारत नाम के महाकाव्य की रचना शुरू करने जा रहे थे |अपने महाकाव्य के लिए भी एक ऐसा लेखक चाह रहे थे जो उनके विचारों की गति को बीच में बाधित ना करे |मतलब बिना रुके लिखे |वो सोच विचार कर ही रहे थे कि इसी बीच उन्हें श्री गणेश जी की याद आई क्यूँकि गणेश जी बुद्धि और विद्या के स्वामी माने जाते हैं |गणपति महाराज सभी देवों में सबसे अधिक धैर्यवान और स्थिर हैं |उनकी लेखनी की शक्ति भी अद्भुत है |यही सोचकर महर्षि वेदव्यास जी ने भगवान गणेश जी से आग्रह किया कि गणेश जी उनके महाकाव्य के लेखक बने |
शर्त रखकर गणेश जी ने महाभारत को लिखने की हाँ करी-
महर्षि वेदव्यास की बात तो गणेश जी ने मान ली, लेकिन साथ ही एक शर्त भी रख दी – गणेश जी की शर्त थी कि महर्षि वेदव्यास जी एक पल के लिए भी कथा वाचन में विश्राम नहीं करेंगे| यदि वे एक पल के लिए भी रुके तो गणेश जी वहीं लिखना छोड़ देंगे| महर्षि वेदव्यास जी ने उनकी बात मान ली और साथ में अपनी एक शर्त भी रख दी कि गणेश जी बिना समझे कुछ नहीं लिखेंगे |हर पंक्ति लिखने से पहले उन्हें उसके अर्थ( रहस्य )को समझना होगा गणेश जी ने भी उनकी बात मान ली|
भगवान गणेश ने महाकाव्य को लिखना शुरू किया-
इस तरह दोनों ही विद्वान एक साथ आमने-सामने बैठकर अपनी भूमिका निभाने में लग गए |महर्षि वेदव्यास ने बहुत अधिक गति से बोलना शुरू किया और उसी गति से भगवान गणेश जी ने महाकाव्य को लिखना जारी रखा| इस गति के कारण एकदम से गणेश जी की कलम टूट गई |वह ऋषि की गति के साथ तालमेल बनाने में चुकने लगे, इस स्थिति में हार ना मानते हुए गणेश जी ने अपना एक दांत तोड़ कर उसे स्याही में डुबोकर लिखना जारी रखा|
इसीकारणगणेशजीकोएकनयानामएकदंतभीमिला|
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