आध्यात्मिक दुनिया में कुंडलिनी योग का बहुत महत्व है । जब ध्यान गहरा हो जाता है तब आध्यात्मिक प्रगति होती है
और कुंडलिनी जागृत हो जाती है । आइए विस्तार से जानते हैं
कि कुंडलिनी क्या है और यह कैसे जागृत होती है?
जैसे हमारा हृदय रक्तवहन तंत्र का मुख्य केंद्र है और मस्तिष्क तंत्रिका तंत्र का, वैसे ही सूक्ष्म शक्ति
प्रणाली के भी विविध चक्र, नाडिया और वाहनियां होती हैं ।
तीन मुख्य सूक्ष्म नाडियाँ है-
सुषुम्ना नाड़ी यह मध्य नाड़ी है और रीड की हड्डी के मूल से लेकर सिर के ऊपर तक जाती है ।
पिंगला नाड़ी अथवा सूर्य नाड़ी, यह नाडी सुषुम्ना नाड़ी के दाएं से जाती है ।
इडा नाडी अथवा चंद्र नाड़ी, यह नाडी सुषुम्ना नाड़ी के बाएं से जाती है।
राण शक्ति, देह में सूर्य नाड़ी, चंद्र नाड़ी एवं अन्य छोटी नाड़ियों के माध्यम से संचार करती है ।
कुंडलिनी क्या है?
कुंडलिनी एक आध्यात्मिक शक्ति है तथा यह सामान्य व्यक्ति में सुप्त अवस्था में सर्पीले आकार में सुषुम्ना नाड़ी के मूल में रहती है।
साधना से यह रीढ़ के मूल से ऊपर की ओर सुषम्ना नाड़ी से होते हुए मस्तिष्क तक जाती है। जब यह ऐसा करती है तब कुंडलिनी
मार्ग में प्रत्येक चक्र को जागृत करती हुई जाती है। जब कुंडलिनी सुषुम्ना नाड़ी से प्रवाहित होते हुए प्रत्येक चक्र से गुजरती है तब एक
पतला सूक्ष्म द्वार रहता है जिसे प्रत्येक चक्र पर खोलकर वह अपनी आगे की अंदर की दिशा में यात्रा करती है । जब वह द्वार को
बार-बार धकेल देती है तब कभी-कभी सुषुम्ना नाड़ी के द्वारा उस चक्र पर आधारित ऊर्जा का प्रभाव बढ़ जाता है। तब कहीं और
जाने का मार्ग न मिलने पर वह आस-पास की सूक्ष्म वाहिनियों में प्रवाहित होने लगती है और प्राण शक्ति में परिवर्तित हो जाती है ।
उस समय व्यक्ति उस क्षेत्र से संबंधित महानतम क्रियाकलाप का अनुभव लेता है।
उदाहरण के तौर पर-
प्राण शक्ति में वृद्धि अगर अनाहत चक्र के आसपास हुई है तो यह व्यक्ति विशेष को सृजनशील बना देती है ।
अगर यह वृद्धि स्वाधिष्ठान चक्र के आसपास हुई है तो प्रेरणा शक्ति काम वासना बढ़ा देती है ।
कुंडलिनी जागरण के सामान्य लक्षण- अपने आप झटके लगना या शरीर का कंपकंपाना ।
अत्यंत उष्णता, विशेषकर जब चक्रों से शक्ति के प्रवाहित होने का अनुभव होता है ।
विशेष चक्र से संबंधित दृश्य दिखाई देना अथवा नाद सुनाई देना।
दिव्या आनंद की अनुभूति होना ।
सहज प्राणायाम, आसन अथवा मुद्रा ।
भावनात्मक शुद्धि होना जिसमें कोई एक विशेष भावना थोड़े समय के लिए प्रबल हो जाती है।
कुंडलिनी को जागृत कैसे करें-
कुंडलिनी को दो तरह से जागृत किया जा सकता है साधना से व शक्तिपात से ।
साधना द्वारा कुंडलिनी जागरण-
इसके अंतर्गत ईश्वर के लिए विभिन्न योग मार्गों द्वारा की गई साधना आती है जैसे कर्म योग, भक्ति योग, हठयोग तथा गुरु कृपा योग।
हठयोग से की गई साधना के अंतर्गत ब्रह्मचर्य का पालन, प्राणायाम, योगिक क्रियाएं तथा अन्य साधनाएं आती हैं।
कुछ लोग हठयोग के द्वारा हठपूर्वक कुंडलिनी जागृत करने की कोशिश करते हैं इसके घातक परिणाम हो सकते हैं। कुछ इससे विक्षिप्त तक हो जाते हैं ।
शक्तिपात से कुंडलिनी जागरण-
शक्तिपात द्वारा कुंडलिनी जागरण में आध्यात्मिक शक्ति एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को प्रदान की जाती है। विशेषकर गुरु द्वारा
अथवा उन्नत पुरुष द्वारा अपने शिष्य को प्रदान की जाती है । मंत्र अथवा किसी पवित्र शब्द, नेत्रों से, विचारों से अथवा स्पर्श से
धारक के आज्ञा चक्र पर शक्तिपात किया जा सकता है। यह योग्य शिष्य पर गुरु द्वारा की गई कृपा समझी जाती है। इस शक्तिपात
से कुंडलिनी जागृत होने लगती है।
कुंडलिनी जागृत होने के बाद किस गति से कुंडलिनी ऊपर की दिशा में जाती है यह शिष्य के निरंतर और लगातार साधना के
बढ़ते हुए प्रयासों पर निर्भर करता है । एक उदाहरण द्वारा इस बात को अच्छे से समझा जा सकता है ।
लगातार साधना द्वारा कुंडली जागृत करना वैसा ही है जैसे कठिन परिश्रम द्वारा अपना भाग्य उदय करना ।
सीधी शक्तिपात से कुंडलिनी जागृत करना वैसा ही है जैसे किसी अरबपति के घर में पैदा होने पर पिता पुत्र को तुरंत धन उपलब्ध करा कर देता है ।
दोनों में से मेहनत से कमाया हुआ धन ही अधिक टिकाऊ माना जाता है ।अतः आध्यात्मिक प्रगति के लिए साधना के द्वारा कुंडलिनी को जागृत करना अधिक विश्वसनीय विकल्प है ।
कुंडलिनी के कार्य
इससे सभी नाड़ियों का संचालन होता है। योगशास्त्र में मानव शरीर के भीतर 7 चक्रों का वर्णन किया गया है। कुंडलिनी को
जब सिद्ध योग के द्वारा जागृत किया जाता है तब यह शक्ति जागृत होकर मस्तिष्क की ओर बढ़ते हुए शरीर के सभी चक्रों
को क्रियाशील करती है। यह कुंडलिनी ही हमारे शरीर, भाव और विचार को प्रभावित करती है।
योग शास्त्र के विद्वान कहते हैं कि मस्तिष्क में एक गहरा गड्ढा है वहां दिव्य शक्ति छिपी पड़ी है। यह गड्ढा सिर को छेद कर या
दिमाग का ऑपरेशन कर नहीं ढूंढा जा सकता। इसका अस्तित्व स्थूल मस्तिष्क में नहीं सूक्ष्म शरीर में है। इस केंद्र को योग साधना
से निर्मल करते हुए केवल चित्त में अनुभव किया जा सकता है। मस्तिष्क में विद्यमान उस गहरे कुंड को जगा दिया जाए तो व्यक्ति के
संपूर्ण अस्तित्व में स्थित शक्ति केंद्र जाग उठते हैं। सामान्य स्थिति में यह केंद्र सोए पड़े रहते हैं।
कुंडलिनी : मेल या फीमेल एनर्जी –
परमपिता का अर्धनारीश्वर भाग शक्ति कहलाता है। यह ईश्वर की पराशक्ति है जिसे राधा, सीता, दुर्गा अथवा पार्वती या काली आदि
नामों से पूजते हैं । पहले के समय में लोगों ने ध्यान साधना के दौरान कुंडलिनी शक्ति के अलग-अलग रूप देखें एवं उन्हें चित्र या
मूर्ति में ढालने का प्रयास किया।
इन के अलग-अलग नाम दिए गए। यानी यह सभी शक्तियां इंसान के अंदर है इसलिए लोगों को ध्यान में दिखी लेकिन समय के
साथ-साथ लोगों ने इन शक्तियों को अंदर की बजाय बाहर मूर्तियों में ढूंढना आरंभ कर दिया। आज भी यह शक्तियां इंसान के
अंदर हैं और सुप्त अवस्था में विद्यमान है ।
ईश्वर की पराशक्ति जिसे हम माता पार्वती, लक्ष्मी, दुर्गा या काली इत्यादि नामों से पुकारते हैं वह ईश्वर का ही हिस्सा होती है।
जब ईश्वर और ईश्वर की यह पराशक्ति मिलती है तो ईश्वर के उस भाग को अर्धनारीश्वर कहा जाता है। परमपिता परमेश्वर
की इसी पराशक्ति को कुंडलिनी कहा जाता है।
शरीर में स्थित सात चक्र और कुंडलिनी-
हमारे शरीर में मुख्यतः साथ चक्र होते हैं ।
मूलाधार, स्वाधिष्ठान, मणिपुर, अनाहत, विशुद्ध, आज्ञा और सहस्रार ।
इन सभी के अलग-अलग कार्य तथा अलग-अलग देवता है । कुंडलिनी के जागृत होने पर जो चक्र अधिक
सक्रिय होगा व्यक्ति विशेष पर वैसा ही असर पड़ेगा ।
अनाहत चक्र और भगवान शिव-
हृदय स्थल में स्थित स्वर्णिम वर्ण का द्वादश दल कमल की पंखुड़ियों से युक्त द्वादश स्वर्ण अक्षरों में सुशोभित चक्र ही अनाहत चक्र है।
अगर आपकी ऊर्जा अनाहत में सक्रिय है तो आप एक सृजनशील व्यक्ति होंगे । हर क्षण आप कुछ ना कुछ नया रचने की सोचते हैं।
आप चित्रकार, कवि, कहानीकार, इंजीनियर आदि हो सकते हैं।
इस चक्र में पार्वती और शिव जी का वास होता है ।
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