महात्मा बुद्ध विष्णु के अवतार हैं या नहीं। इस प्रश्न का उत्तर इतना सरल नहीं है ।इस विषय पर इतिहासकारों की अलग अलग राय है।
इस पर बात करने से पहले जानते हैं कि बौद्ध धर्म क्या है? उसकी मान्यताएँ क्या है-
बौद्ध धर्म किसी दूसरे धर्म के प्रति नफरत नहीं सिखाता और ना ही वह किसी अन्य धर्म के सिद्धांतों का खंडन ही करता है। ऐसा माना जाता है कि यह धर्म न तो वेद विरोधी है और ना हिंदू विरोधी। गौतम बुद्ध ने तो सिर्फ जातिवाद, कर्मकांड, पाखंड, हिंसा और अनाचरण का विरोध किया था। गौतम बुद्ध के शिष्यों में कई ब्राह्मण थे, आज भी ऐसे ब्राह्मण हैं जो बौद्ध बने बगैर ही भगवान बुद्ध से अथाह प्रेम करते हैं और उनकी विचारधारा को मानते हैं।
बुद्ध ने अपने धर्म या समाज को नफरत या खंडन मंडन के आधार पर खड़ा नहीं किया। किसी विचारधारा के प्रति नफरत फैलाना, किसी राजनीतिज्ञ का काम हो सकता है और खंडन मंडन करना दार्शनिकों का काम होता है। बुद्ध न तो दार्शनिक थे और ना ही राजनीतिज्ञ। बुद्ध तो बस बुद्ध थे। हजारों वर्षों में कोई एक बुद्ध होता है ।
क्या महात्मा बुद्ध विष्णु के अवतार थे –
अब बात करते हैं कि क्या महात्मा बुद्ध ने विष्णु भगवान के अवतार के रूप में जन्म लिया – इसमें विद्वानों की दो तरह की विचारधाराएँ हैं- एक वो जो मानते हैं कि महात्मा बुद्ध विष्णु के अवतार नहीं हैं ।
दूसरे वो जो कहते हैं कि महात्मा बुद्ध विष्णु भगवान के अवतार हैं। आइए दोनों विचारधाराओं को विस्तार से समझते हैं –
कुछ लोगों के अनुसार बुद्ध को हिंदुओं का अवतार मानना उचित नहीं है। उनका तर्क यह है कि किसी भी पुराण में उनके विष्णु अवतार होने का कोई उल्लेख नहीं मिलता और कुछ हद तक यह सही भी है। हालांकि कल्कि पुराण में उनके अवतार लेने का उल्लेख मिलता है । दशावतार के क्रम में उनको नौवें अवतार के रूप में चित्रित किया गया है । इस संबंध में पुराणों से इतर अन्य ग्रंथों में इसका उल्लेख मिलता है कि बुद्ध हिंदुओं के अवतारी पुरुष है लेकिन मूल पुराणों में नहीं । बुद्ध को चौबीस अवतारों में से एक अवतार के रूप में चित्रित किया जाता रहा है ।
विद्वानों का कहना है कि अगर बुद्ध विष्णु के अवतार थे तो फिर हिंदू धर्म से हटकर अलग धर्म की स्थापना करने की उन्हें क्या जरूरत थी । जिस तरह अन्य अवतारी पुरुषों ने सनातन धर्म में रहते हुए धर्म में सुधार किया, उसी तरह बुद्ध को भी करना चाहिए था और यही कारण है कि हिंदू धर्म से संबंधित किसी भी पुरातन ग्रंथ में बुद्ध विष्णु अवतार के रूप में उद्धृत नहीं है।
दूसरी ओर बुद्ध को विष्णु अवतार मानने वालों का कहना है कि अगर बुद्ध वैदिक धर्म के अंतर्गत ही धर्म सुधारक का काम करते तो वैदिक धर्म में क्लिष्टता विद्यमान ही रहती। ऐसे लोगों का मानना है कि यह सत्य है कि सभी अवतारों ने मानवीय कल्याण के लिए सराहनीय पहल की लेकिन छठी शताब्दी में बुद्ध के समय में धार्मिक कट्टरता जड़बद्ध थी जिसमें सुधार करने का बुद्ध ने घोर प्रयास किया। इस सुधार के आधार पर और सनातन हिंदू कुल में जन्म लेने के आधार पर उन्हें विष्णु का अवतार माना जा सकता है।
चूँकि मानव मात्र विष्णु के द्वारा पालन-पोषण किए जाने के कारण उन्हीं की संतान हैं और बुद्ध ने विष्णु तक पहुंचने के लिए सुगम मार्ग दिखलाया।इस आधार पर विष्णु को अवतार माना जा सकता है ।
एक और मत के अनुसार –
हिंदू धर्म में भगवान विष्णु के दस अवतारों का उल्लेख मिलता है ।भगवान बुद्ध को विष्णु का अवतार मानने वालों का कहना है कि गौतम बुद्ध और भगवान बुद्ध एक नहीं है। गौतम बुद्ध शुद्धोधन व माया के पुत्र थे जबकि शाक्य सिंह यानी भगवान गौतम बुद्ध बहुत ही ज्ञानी व्यक्ति थे। कठिन तपस्या के बाद जब उन्हें तत्व अनुभूति हुई तो वह बुद्ध कहलाए यही भगवान बुद्ध विष्णु के अवतार हैं।
इस बात की प्रमाणिकता ऐतिहासिक ग्रंथों में मिलती है। 1807 में रामपुर से प्रकाशित अमरकोश में एच टी कॉल ब्रुक ने इसे प्रमाणित किया है। ललित विस्तार ग्रंथ की इसमें अध्याय की 178 पृष्ठ पर बताया गया है कि यह मात्र संयोग ही है कि गौतम बुद्ध (शाक्य सिंह) ने उसी स्थान पर तपस्या की थी जिस स्थान पर भगवान बुद्ध ने तपस्या की।
यही कारण है कि लोगों ने दोनों को एक ही मान लिया। जर्मन के वरिष्ठ स्कॉलर मैक्समूलर जी के अनुसार शाक्य सिंह बुद्ध यानी गौतम बुद्ध कपिलवस्तु के लुंबिनी के वनों में 470 ईसवी पूर्व में जन्मे थे। गौतम बुद्ध के पिता का नाम शुद्धोधन तथा माता का नाम माया देवी है। जबकि भगवान बुद्ध ( शाक्य सिंह) की माता का नाम अंजना था और पिता का नाम हेम सदन और उनका जन्म बिहार के गया में हुआ था।
श्रीमद् भागवत महापुराण (1.3.24) तथा श्री नरसिंह पुराण (35/ 24 )के अनुसार भगवान बुद्ध लगभग 5000 साल पहले इस धरती पर आए थे जबकि मैक्स मूलर के अनुसार गौतम बुद्ध 2491 साल पहले इस धरती पर अवतरित हुए थे।
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