भगवान कृष्ण की मृत्यु कैसे हुई थी

हम सबके मन में कभी-कभार ऐसे प्रश्न उठते ही हैं कि धरती पर अवतार लेने वाले हमारे महापुरुषों ने अपनी देह कब और कैसे त्यागी?
इन्हीं में से एक प्रश्न बनता है कि भगवान श्रीकृष्ण की मृत्यु कैसे हुई? मृत्यु के बाद क्या श्री कृष्ण ने अपना शरीर छोड़ दिया? क्या  किसी अन्य शरीर को धारण कर लिया? उनके शरीर का दाह संस्कार किसने किया?


आइए इन्हीं प्रश्नों के उत्तर विस्तार से जानते हैं –
महर्षि वेदव्यास ने महाभारत की कहानी को 18 खंडों में संकलित किया था । युद्ध के बाद भी बहुत कुछ ऐसा हुआ जिसके बारे में जानना जरूरी है। 18 दिन चले महाभारत के युद्ध में रक्तपात के सिवाय कुछ हासिल नहीं हुआ । इस युद्ध में कौरवों के समस्त कुल का नाश हुआ, साथ ही पाँचों पांडवों को छोड़कर पांडुओं  के अधिकांश लोग मारे गए लेकिन इस युद्ध के पश्चात एक और वंश का खात्मा हो गया वह था श्री कृष्ण जी का यदुवंश । जिनमें भगवान श्रीकृष्ण की मृत्यु और द्वारिका के नदी में समा जाने की घटना अत्यंत महत्वपूर्ण है। मौसल पर्व अट्ठारह पर्वों में से एक है जो आठ अध्यायों का संकलन है। इस पर्व में भगवान कृष्ण के मानव रूप को छोड़ने और उनकी मृत्यु के पश्चात उनकी नगरी द्वारिका के साथ घटी घटना का वर्णन है।


आइए जानते हैं क्या छुपा है मौसल पर्व की कहानी के भीतर-
यह घटना कुरुक्षेत्र के युद्ध के 35 साल बाद की है। कृष्ण की द्वारका नगरी बहुत शानदार व खुशहाल थी। जहां युवाओं के भीतर चंचलता बड़ी ही सामान्य बात थी और वहाँ  सभी भोग विलास में लिप्त रहते थे। एक बार कृष्ण के पुत्र सांब को एक शरारत सूझी। स्त्री का वेश बनाकर वे अपने दोस्तों के साथ ऋषि विश्वामित्र, दुर्वासा,  वशिष्ठ और नारद से मिलने गए। वे सभी भगवान श्री कृष्ण के साथ एक औपचारिक बैठक में शामिल होने के लिए द्वारिका आए थे। सांब ने स्त्री के वेश में उनके सामने आकर कहा कि वह गर्भवती है। वे उसे बताएं कि उसके गर्भ में बच्चे का लिंग क्या है? उनमें से एक ऋषि ने इस खेल को समझ लिया और क्रोधित होकर सांब  को श्राप दिया कि वह एक लोहे के मुसल को जन्म देगा जिससे उनके कुल और साम्राज्य का विनाश होगा।


मुनियों की यह बात सुनकर वे कुमार बहुत अधिक डर गए  उन्होंने तुरंत ही सांब का पेट खोलकर देखा तो सचमुच उसमें से एक लोहे का मुसल मिला ।
अब तो वे पछताने लगे और कहने लगे कि हम बड़े अभागे हैं देखो! हम लोगों ने यह क्या कर डाला? अब लोग हमें क्या कहेंगे? इस प्रकार वे बहुत घबरा गए ।
यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि बालकों ने तुरंत सांब का पेट खोलकर देखा। इसका मतलब यह नहीं हुआ कि सांब के स्थूल पेट के अंदर वह लोहे का मुसल था। सांब ने गर्भवती स्त्री का वेश धारण  किया था यानी जो झूठ मूठ का गर्भ रूपी पेट बनाया था कपड़े आदि से उसकी जगह लोहा था ।
वह मुसल  लेकर सभी कुमार सभा में गए और उग्रसेन को सारी घटना बताई। उग्रसेन ने सांब से कहा कि वे इस मुसल का चूर्ण बनाकर प्रभास नदी में प्रवाहित कर दें । सांब ने  सब कुछ उग्रसेन के कहे अनुसार किया।


उस लोहे के टुकड़े को एक मछली ने निगल लिया और चुरा तरंगों के साथ थोड़े दिनों में एरक (बिना गांठ वाली घास )के रूप में उग गया। मछुआरों ने दूसरी मछलियों के साथ उस मछली को पकड़ लिया जिसके पेट में लोहे का टुकड़ा था उस लोहे के टुकड़े को जरा नामक बहेलिए ने अपनी बाण की नोक में लगा लिया।
इस घटना के बाद द्वारका के लोगों ने विभिन्न अशुभ संकेतों का अनुभव किया। सुदर्शन चक्र, कृष्ण के शंख और बलराम के हल का अदृश्य हो जाना, अपराधों और पापों में बढ़ोतरी हो जाना,  लाज शर्म जैसी चीजों का समाप्त  हो जाना । चारों ओर अपराध बढ़ जाना ।
बुजुर्गों और गुरुओं का असम्मान, निंदा, द्वेष जैसी भावनाओं में उल्लेखनीय बढ़त आदि सब द्वारका के लोगों का जीवन बन गया था।


यह सब देख कर भगवान श्रीकृष्ण परेशान हो गए और उन्होंने अपनी प्रजा से प्रभास नदी के तट पर जाकर तीर्थ यात्रा कर अपने पापों से मुक्ति पाने को कहा। सभी ने ऐसा ही किया । वहां जाकर सभी ने मदिरापान किया और एक दूसरे से भिड़ गए, आक्रमण करने लगे और पूरे यदुवंश का अंत हो गया । तभी बलराम जी भी समुद्र तट पर बैठकर एकाग्र चित्त से परमात्मा चिंतन करने लगे और अपने आत्मा को आत्मस्वरूप में ही स्थिर करके संसार को छोड़ दिया।
जब श्री कृष्ण ने देखा कि मेरे बड़े भाई बलराम जी परम पद में लीन हो गए तो वे एक पीपल के पेड़ के नीचे जाकर बैठ गए। भगवान श्री कृष्ण ने उस समय अपना चतुर्भुज रूप धारण कर लिया। जरा नाम के एक बहेलिये ने सोचा कि कोई हिरण है और श्री कृष्ण जी पर बाण चला दिया ।
पास आने पर उसे पता चला कि यह तो भगवान कृष्ण जी हैं तो उनके पैरों में पड़कर क्षमा मांगने लगा। भगवान श्री कृष्ण ने बहेलिये को कहा कि तुम्हारा इसमें कोई कसूर नहीं है ।यह मेरी ही लीला है, तुम बिना संकोच के स्वर्ग को जाओ ।


भगवान श्री कृष्ण ने दारुक को द्वारका जाने के लिए कहा ।उन्होंने कहा कि मेरे वहां ना रहने पर समुद्र द्वारिका को पानी में डुबो देगा ।वहां पर रह रहे स्त्रियों व बच्चों को सकुशल अर्जुन के संरक्षण में इंद्रप्रस्थ ले जाओ । दारुक श्री कृष्ण जी की आज्ञा मानकर उन्हें प्रणाम करके वहां से चला गया ।
भगवान श्री कृष्ण  सशरीर अपने धाम में चले गए । उनका दाह संस्कार नहीं किया गया ।उन्होंने कोई अन्य शरीर धारण नहीं किया ।
श्री कृष्ण जी का शरीर माया के पंच तत्वों से नहीं बना है ।

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