रावण ब्रह्माण्ड का सबसे बड़ा विद्वान् या एक शक्तिशाली राक्षस

रावण लंका का राजा था लेकिन उसका चरित्र एक विलेन के रूप में जाना जाता है ।आमतौर पर जब भी रावण का जिक्र आता है तो हमारे मन में उसकी नकारात्मक छवि ही उभरती है और हम केवल उसके अवगुण देखते हैं लेकिन रावण एक कुशल राजनीतिज्ञ, महापराक्रमी, अत्यंत बलशाली, अनेक शास्त्रों का ज्ञाता, प्रकांड पंडित और महाज्ञानी था । रावण के व्यक्तित्व को देखते हुए यह कहना मुश्किल हो जाता है कि उसे ब्रह्मांड का सबसे बड़ा विद्वान कहें या एक शक्तिशाली राक्षस। प्रति नारायण होने के बावजूद भी रावण को एक महान विद्वान माना जाता है । उसके जीवन के ऐसे कई रहस्य है जो बहुत कम लोग ही जानते हैं । आइए रावण के जीवन से जुड़े अद्भुत रहस्य विस्तार पूर्वक बताते हैं- 

पिता ऋषि और माता राक्षसी– 

यह कम ही लोग जानते हैं कि रावण के पिता ऋषि थे जबकि उनकी माता राक्षसी थी । रावण के जन्म के समय रावण बहुत भयानक था । जब रावण के पिता ने पहली बार रावण को देखा तो वे उसे देखकर भयभीत हो गए थे। 

 रथ में अश्व नहीं गधे थे– 

वाल्मीकि रामायण के उल्लेख में आया है कि रावण के रथ में घोड़े नहीं बल्कि गधे जुते हुए थे । रावण के यहां अश्व उतने आसानी से नहीं मिलते थे, इसलिए घोड़ों की जगह गधों का प्रयोग किया जाता था ।सीता हरण व युद्ध में भी उसने गधे जुते हुए रथ का प्रयोग किया। युद्ध गहन होने पर अश्व भी जोते गए थे । बाल्मीकि जी रावण के रथ के बारे में बताते हैं कि चिपु चिपु करते गधे तो जुते ही थे, पहियों की ध्वनि भी गधों की ही भांति थी। 

 यमलोक पर था अधिकार–        

 ऐसा माना जाता है कि रावण को ब्रह्मा जी से वरदान मिला हुआ था । उसी वरदान के कारण रावण ने देवलोक पर विजय प्राप्त की और देवलोक पर विजय प्राप्त करने के बाद रावण ने यमराज को पराजित कर,  यमलोक पर अधिकार कर लिया और नर्क भोग रही आत्माओं को अपनी सेना में शामिल कर लिया । 

अशोक वाटिका में थे दिव्य पुष्प– 

 रावण की अशोक वाटिका में एक लाख से अधिक अशोक के पेड़ों के साथ-साथ दिव्य पुष्प  और फलों के वृक्ष भी थे। यहीं से हनुमान जी आम लेकर भारत आए थे।  

हुआ यूं कि हनुमान जी को बहुत जोरों की भूख लग गई तो उन्होंने सीता माता की आज्ञा लेकर अशोक वाटिका से फल तोड़कर खाने शुरू कर दिए। तभी उन्हें आम का स्वाद चखने को मिला। उन्हें यह फल बहुत ही स्वादिष्ट लगा। उनके मन में विचार आया कि यह अद्भुत फल भगवान राम को भेंट किए जाए । इसलिए लंका दहन करने के बाद जब वे वापस लौटने लगे तो एक बड़ी सी गठरी में आम बांधकर अपने साथ ले गए। इसके बाद प्रेम पूर्वक अपने साथ लाए आम भगवान राम को भेंट कर दिए ।आम खाकर भगवान राम भी आनंदित हो गए। राम सहित लक्ष्मण ने भी आम के मीठे स्वाद का आनंद लिया और गुठलियों को फेंक दिया। इन गुठलियों से आम के पौेधे ने  जन्म लिया और समय के अनुसार देश के विभिन्न भागों में इसका विस्तार होता गया।  

भगवान राम की झूठी गुठलियों से भारत में आम के पेड़ का जन्म हुआ । इसलिए आम को भगवान का प्रसाद भी माना जाता है। जब आम के पेड़ पर फल लग जाता है तब उस पर हनुमान जी का वास होता है। इसलिए बुरी शक्तियां आम के पेड़ से दूर रहती हैं । 

 नाभि में था अमृत–   

रावण की नाभि में अमृत होने के कारण रावण का एक सिर कटने के बाद दोबारा दूसरा सिर आ जाता था और वह जीवित हो जाता था। सभी देवता और दिगपाल रावण के दरबार में हाथ जोड़कर खड़े रहते थे। 

शनि महाराज को बनाया था बंदी –  

                                              अपने पुत्र मेघनाथ को रावण अजेय बनाना चाहता था। इसलिए मेघनाथ के जन्म के समय उसने नवग्रहों को आदेश दिया कि वह उसके पुत्र की कुंडली में सही तरह से बैठे । लेकिन शनिदेव तो न्याय के देवता है, इसलिए शनिदेव रावण की मनचाही स्थिति में तो रहे पर उन्होंने मेघनाथ के जन्म के दौरान अपनी दृष्टि वक्री कर ली, जिसकी वजह से मेघनाथ अल्पायु हो गया। शनि देव की इस हरकत से रावण काफी क्रोधित हो गया और रावण ने क्रोध के कारण अपनी गदा से शनि के पैर पर प्रहार किया व अपने बंदी गृह में घमंड से चूर होकर उन्हें उल्टा लटका दिया । संपूर्ण लंका के जलने से सारे ग्रह आजाद हो गए ।हनुमान जी ने शनि देव को भी आज़ाद करवाया । 

  रंभा से मिला था श्राप– 

                              रावण किसी स्त्री से उसकी मर्जी के बिना संबंध नहीं बना सकता था। अगर उसने ऐसा करने की कोशिश की तो उसके सिर के टुकड़े-टुकड़े हो जाएंगे और उसकी मृत्यु हो जाएगी। यह श्राप रावण को रंभा नाम की अप्सरा ने दिया था । 

पर्वत में दबा था हाथ और रच दिया शिव तांडव स्तोत्र– 

                                                                           रावण ने शिव को अपना इष्ट माना था। एक दिन रावण के मन में आया कि मैं सोने की लंका में रहता हूं और मेरे आराध्य शिव कैलाश पर्वत पर। रावण अपनी शक्ति के मद में इतना मतवाला हो गया कि उसने शिव जी के कैलाश पर्वत को ही उठा लिया था । उस समय शिव जी ने मात्र अपने पैर के अंगूठे से ही कैलाश पर्वत का भार बढ़ा दिया और रावण उसे अधिक समय तक उठा नहीं सका ।उसका हाथ पर्वत के नीचे फंस गया। बहुत कोशिश के बाद भी रावण अपना हाथ वहां से नहीं निकाल सका। तब रावण भगवान शंकर से क्षमा करें, क्षमा करें बोल स्तुति करने लग गया जो शिव तांडव स्तोत्र के नाम से प्रसिद्ध हुई, जिसमें 17 श्लोक  है। माना जाता है कि शिव तांडव  स्तोत्र एक ऐसा स्तोत्र है जिसके माध्यम से आप न केवल धन-संपत्ति पा सकते हैं बल्कि इससे जीवन में आने वाली सभी बाधाओं को दूर भी किया जा सकता है।रावण ने शिवजी को प्रसन्न करने के लिए शिव तांडव स्तोत्र रचना की थी । इससे शिवजी खुश हुए और उसे मुक्त कर दिया। 

शिव जी ने रावण से बनवाया था पार्वती माता के लिए महल– 

       रावण वास्तु शास्त्र का बहुत बड़ा ज्ञाता था । कहते हैं माता पार्वती के लिए महल के निर्माण का कार्य भगवान शंकर ने रावण को ही सौंपा था। तब रावण ने सोने की लंका का निर्माण किया। भगवान शिव ने गृह प्रवेश की पूजा के लिए भी रावण को ही पुरोहित बनाया था । जब रावण को दक्षिणा के लिए पूछा गया तो रावण ने वही सोने की लंका भगवान से दक्षिणा में मांग ली । 

तप के बल पर ग्रहों को बना लिया था दास – 

                                                              रावण महातपस्वी था। अपने तप के बल पर ही उसने सभी देवों और ग्रहों को अपने पक्ष में कर लिया था। उसकी कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने उसे अमरता और विद्वता का वरदान दिया था । 

राम जी के निमंत्रण पर पूजा के लिए पहुंचा था रावण– 

                                                                            रावण भगवान शिव का परम भक्त था।कुछ कथाओं के अनुसार जब सेतु निर्माण के समय रामेश्वर में शिवलिंग की स्थापना की गई तो उसके पूजन के लिए किसी विद्वान पुरोहित की खोज शुरू हुई। उस वक्त सबसे योग्य विद्वान रावण ही था इसलिए उससे शिवलिंग पूजन का आग्रह किया गया और शिव भक्त रावण ने तब अपने शत्रुओं के आमंत्रण को स्वीकार कर लिया था । 

महान कवि और आयुर्वेद का जानकार था रावण– 

                                                                     रावण एक महान कवि था । शिव तांडव स्तोत्र इसका सबसे बड़ा उदाहरण है । वह चारों वेदों का ज्ञाता होने के साथ-साथ आयुर्वेद की जानकारी भी रखता था । रावण को रसायन शास्त्र का ज्ञाता भी कहा जाता था । माना जाता है कि रसायन शास्त्र के इस ज्ञान के बल पर उसने कई अचूक शक्तियां हासिल की थी । 

संगीत प्रेमी रावण 

                             रावण संगीत प्रेमी था।वह वीणा बजाने में निपुण था । उसने एक वाद्य की रचना भी की थी जिसे बेला कहा जाता था । इस वाद्य को ‘रावण हत्था’ भी कहते हैं । 

महान ज्योतिष – 

                         रावण ब्रह्मज्ञानी व बहु विद्याओं का जानकार भी था।उसे मायावी इसीलिए कहा जाता था कि वह इंद्रजाल, तंत्र, सम्मोहन और तरह-तरह के जादू जानता था। तंत्र विषय पर ‘रावण संहिता’ किताब ज्योतिष की बेहतरीन किताब है । 

लग्न शील रावण– 

                           रावण जब किसी भी कार्य को हाथ में लेता था तो उसे पूरी निष्ठा और कर्तव्य भाव से पूरा करता था । इसी गुण के कारण कई दिव्य अस्त्र -शस्त्र प्राप्त कर वह विश्व विख्यात बना । 

कुशल राजनीतिज्ञ रावण– 

                                     रावण निर्भीक,  निडर और साहसी होने के साथ-साथ कुशल राजनीतिज्ञ भी था । जब रावण मृत्यु शैया पर था तो भगवान राम ने लक्ष्मण को रावण से सीख लेने के लिए कहा था । रावण ने शासन कला तथा कूटनीति की महत्वपूर्ण बातें लक्ष्मण को बताई थी । 

प्रखर बुद्धि वाला –  

                             रावण के ज्ञान के बारे में कहा जाता है कि उसके बराबर प्रखर बुद्धि का प्राणी पृथ्वी पर दूसरा कोई नहीं हुआ है ।उसके मस्तिष्क में बुद्धि और ज्ञान का भंडार था । 

रावण को आज भी विद्वान माना जाता है क्यूँकि उसमें बहुत सी खूबियाँ भी थी । 

भले ही वह बुराई का प्रतीक है फिर भी ऐसी बहुत सारी बातें हैं जो रावण से सीखी जा सकती हैं । 

 रावण का व्यक्तित्व बहुमुखी था एक तरफ वह इतना बड़ा शिव भक्त था, महाज्ञानी था, दूसरी तरफ अहंकार से भरा हुआ निर्दयी व क्रूर राजा था। 

एक तरफ उसने कुबेर से पुष्पक विमान छीन लिया, परायी नारी को हर लाया, वहीं दूसरी तरफ राम जी के निमंत्रण पर पूजा के लिए पहुंचा, मरते समय लक्ष्मण को शिक्षा भी दी । 

अब उसे ब्रम्हांड का सबसे बड़ा विद्वान कहें या एक शक्तिशाली राक्षस! 

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